धर्मो रक्षति रक्षितः पथ विक्रेता कानून, एक आशा की उम्मीद

पथ विक्रेता (जीविका सुरक्षा एवं पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम 2014”  पथ विक्रेताओं को जीविका संरक्षण का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और देश में पथ विक्रय के विनियमन के बारे में सुरक्षा प्रदान करता है। पथ विक्रेता अधिनियम का उद्देश्य पथ विक्रेताओं के हितों की रक्षा करना एवं पथ विक्रय गतिविधियों को नियमित करना है। साथ ही, इस अधिनियम का उद्देश्य पथ विक्रेताओं हेतु ऐसा माहौल तैयार करना है जिसमें वे सुगमता तथा बिना किसी उत्पीड़न के व्यापर कर पाये। पथ विक्रेता कानून को लागू हुए 8 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी रेडी पटरी विक्रेता अपने अधिकारों से वंचित हैं। जिसकी वजह से विक्रेताओं को रोजाना अनेक प्रकार के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में लगभग 75000 विक्रेताओं का सर्वे हुआ है जिसमे से 62000 विक्रेताओं को CoV (सर्टिफिकेट ऑफ़ वेंडिंग) मिल चुका हैं। हालांकि, दिल्ली में लगभग 3 से 4 लाख ऐसे विक्रेता भी है जो सर्वेक्षण की प्रकिरिया से बाहर हैं (स्रोत-दिल्ली हॉकर.कॉम), जिसकी वजह से विक्रेताओं को हर दिन पुलिस और नगर निगम की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। विक्रेताओं का गैर क़ानूनी रूप से सामान ज़ब्त किया जाता हैं, तथा उन पर मनमाना ज़ुर्माना लगाया जाता हैं।

ज़्यादातर ये देखने को मिलता है कि नगर निगम और पुलिस पथ विक्रेता अधिनियम को नहीं मानते हैं, और न ही अधिनियम के तहत अपनी कार्यवाही करते हैं। प्रशासन की कमी के चलते विक्रेताओं को अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों को पैसे देने पड़ते हैं,  जो आज़ादी के 75 साल बाद भी एक अभिशाप की तरह है। न्यायधीश सिंघवी का महाराष्ट्र एकता होकर यूनियन बनाम ग्रेटर मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्परेशन का फ़ैसला याद करना ज़रूरी है:

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